Wednesday, May 12, 2010

तपिश-त्रासदी के दोहे (2)

मृग मरीचिका जल सदृश,
लहर लहर लहराय।
हिरण भागता ही फिरे,
एक बूंद नहिं पाया।।


पशु पक्षी व्याकुल फिरें,
नहीं जलाशय पास।
चहुं दिशि जब सूखा दिखे,
कैसे बुझेगी प्यास ।।


आकुल, व्याकुल सिंह, मृग,
भूल शत्रुवत भाव।
शीतलता की चाह हित,
खोज रहे मिल ठांव।।


सूखी जीभ निकाल कर,
लक-लक करता श्वान।
नेत्र बंद कर हांफता,
संकट में हैं प्राण ।।

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