Wednesday, February 9, 2011

स्वागत श्री ऋतुराज

डा. रुक्म त्रिपाठी
कुहू कुहू कर कोकिला,
गाती फिरती आज।
कृपया स्वागत कीजिए,
आये श्री ऋतुराज ॥

गुन गुन करता बाग में,
गाता है मृदु छंद ।
अली कली मुख चूम कर,
चूस रहा मकरंद ॥

विरही भामिन भावती,
दूर बसे जा कंत।
जाने अब कब मिलन हो,
बीत न जाय बसंत ॥

कामदेव-रति से लगें,
आनंदित दो मित्र ।
यदाकदा दिख रहे ज्यों,
खजुराहो के चित्र ॥

मलयानिल है बांटता,
मनमोहिनी सुवास ।
मनमयूर नर्तन करे,
जब प्रिय हों अति पास ॥

सरसों फूले खेत में,
पसरा आज बसंत।
रंग बसंती का नहीं,
दूर दूर तक अंत ॥

कहीं कहीं होने लगी,
ढोलक ध्वनि संग फाग।
लाल लाल टेसू लगें,
वन में दहकी आग ॥

निर्झर का झर झर लगे,
बजता ज्यों संतूर ।
मानो वह ऋतुराज पर,
मुग्ध आज भरपूर ॥

पतझड़ बीते ही दिखे,
नवपल्लव का दौर।
अतिशय यौवन-भार से,
झुकी आम की बौर ॥

Monday, January 24, 2011

मोरारजी का आटोग्राफ

डा. रुक्म त्रिपाठी
प्रसंग पचास के अर्धदशक का है। वैष्णव देवी कटरा स्थित विश्वायतन योगाश्रम से स्वामी कार्तिकेय के शिष्य स्वामी हरि भक्त चैतन्य तथा धीरेंद्र ब्रह्मचारी योग का प्रचार करने कलकत्ता आये थे। उन्होंने रेड रोड के बगल में स्थित मोहम्मडन स्पोर्टिंग क्लब के निकट विश्वायतन योग शिविर आरंभ किया।
स्वामी हरिभक्त जितने गंभीर थे, उनके गुरु भाई धीरेंद्र उतने ही मुखर। योग प्रशिक्षण धीरेंद्र जी ही देते थे। हरिभक्त जी केवल प्रशिक्षणार्थियों को देखते रहते थे। चूंकि कलकत्ता का फेफड़ा कहलाने वाले विक्टोरिया मेमोरियल के मैदान जानेवाले वायु सेवनार्थी रेड रोड से गुजरते थे, इसलिए उनमें से योग के प्रति रुचि रखनेवाले शिविर में प्रशिक्षणार्थ आने लगे।
उस शिविर में योगिक क्रिया देखने के लिए बहुतों के कदम रुक जाते।
एक दिन प्रसिद्ध नेता मोरारजी भाई देसाई भी जब वहां पधारे तो प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे, धनाढ्य परिवार के दो नन्हें बच्चे अपनी आटोग्राफ बुक उनकी ओर बढ़ाते हुए आटोग्राफ मांगने लगे। तो मोरारजी ने उन्हें लंगोट और गंजी पहने देख कर कहा-‘पहले खद्दर पहन कर आओ।’
उनकी शर्त सुनते ही बच्चे निराश हो गये।
उन दिनों मैं खद्दर ही पहनता था। मैंने खद्दर का पाजामा और कुर्ता पहन कर दोनों की आटोग्राफ बुक लेकर मोरारजी से कहा-‘मैं खादी ग्रामोद्योग भवन के शुद्ध खद्दर से बने कुर्ता, पाजामा पहने हूं, कृपया अब तो आप आटोग्राफ देने से इनकार नहीं करेंगे। ’
उन्होंने मेरा कुर्ता-पाजामा देखा और दोनों आटोग्राफ बुक में आटोग्राफ दे दिया। मैंने बच्चों को उनकी बुक लौटाने के बाद हाथ जोड़ कर मोरारजी से प्रार्थना की,‘आप राष्ट्रीय स्तर के सर्वमान्य नेता हैं , रईस घरों के नन्हें बच्चे खद्दर क्यों पहनने लगे? अपनी शर्त में इन नन्हें- मुन्नों को छूट दे दी होती, तो वे उदास न होते, आपके चरण छू लेते। ’
मोरारजी ने कोई उत्तर नहीं दिया। अन्यमनस्क हो मैदान की ओर वायु सेवन के लिए चल दिये।
कालांतर में जब वे प्रधानमंत्री बने, तो जापान की एक युवती जब उनसे मिलने गयी, तो उन्होंने उसे सहर्ष आटोग्राफ दे दिया। तब सिंथेटिक कपड़े पहने उस युवती को उन्होंने खादी पहन कर आने को नहीं कहा।
जब यह समाचार अखबारों में उछाला गया, तो मैंने एक शिकायती पत्र मोरारजी के पास भेजा था, जिसमें उन नन्हें मुन्नों को आटोग्राफ देने से इनकार करने का जिक्र था। मैंने अपने पत्र में पूछा था , -‘उस जापानी युवती को आपने शर्त में छूट क्यों दी?’ किंतु अफसोस, उन्होंने मेरे उस पत्र का उत्तर कभी नहीं दिया।