Wednesday, February 9, 2011

स्वागत श्री ऋतुराज

डा. रुक्म त्रिपाठी
कुहू कुहू कर कोकिला,
गाती फिरती आज।
कृपया स्वागत कीजिए,
आये श्री ऋतुराज ॥

गुन गुन करता बाग में,
गाता है मृदु छंद ।
अली कली मुख चूम कर,
चूस रहा मकरंद ॥

विरही भामिन भावती,
दूर बसे जा कंत।
जाने अब कब मिलन हो,
बीत न जाय बसंत ॥

कामदेव-रति से लगें,
आनंदित दो मित्र ।
यदाकदा दिख रहे ज्यों,
खजुराहो के चित्र ॥

मलयानिल है बांटता,
मनमोहिनी सुवास ।
मनमयूर नर्तन करे,
जब प्रिय हों अति पास ॥

सरसों फूले खेत में,
पसरा आज बसंत।
रंग बसंती का नहीं,
दूर दूर तक अंत ॥

कहीं कहीं होने लगी,
ढोलक ध्वनि संग फाग।
लाल लाल टेसू लगें,
वन में दहकी आग ॥

निर्झर का झर झर लगे,
बजता ज्यों संतूर ।
मानो वह ऋतुराज पर,
मुग्ध आज भरपूर ॥

पतझड़ बीते ही दिखे,
नवपल्लव का दौर।
अतिशय यौवन-भार से,
झुकी आम की बौर ॥

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