Thursday, January 31, 2013

कब तक होगा रोना?



निर्भय हो चाहे जो करता,ऐसा पाकिस्तान।
लगता बहुत-बहुत भय खाता, अपना हिंदुस्तान॥
भारत के सैनिक का सिर जब, काटा पाकिस्तानी।
लगा हमारे आकाओं  को, नहीं  हुई   हैरानी ॥
संजय या इंदिरा जी होतीं, नहीं इसे सह पातीं।
दुश्मन की छाती पर चढ़ कर, अच्छा पाठ पढ़ातीं॥
पता नहीं इससे भी अप्रिय, आगे क्या है होना।
इस शासन के रहते हमको, कब तक होगा रोना॥
-डॉ. रुक्म त्रिपाठी

Friday, January 25, 2013


                          चकल्लस
                          आजादी
पाकिस्तानी सरहद में घुस, हत्या किये हजार।
भारत इसका बदला ना ले, और जताता प्यार ।।
राजनीति में आ बैठे हैं कितने भ्रष्टाचारी।
घूसखोर, हत्यारे दागी, अगणित व्यभिचारी।।
मनमानी जब कमा रहे हैं, जमाखोर व्यापारी।
अन्न सैक़ड़ों टन सड़ जाता, समझ माल सरकारी।।
भारत में ऐसी ही होती, जम कर के बरबादी।
       अन्य देश में ऐसा ही हो क्या, जिन्हें मिली आजादी।।
   -डा. रुक्म त्रिपाठी

Wednesday, January 23, 2013

सुभाष !




यदि प्रधानमंत्री बन जाते, अपने वीर सुभाष ।
तो जनता की पूरन होती, मन चाही सब आश।।
     इतना भ्रष्टाचार न होता, ना होता व्यभिचार।
     न गरीब भूखा मर पाता, महंगाई से हार ।।
पाकिस्तान शत्रु बन करके, लुक छिप कर जो  मारे।
कब का सबक सिखा देते,  करके वारे न्यारे  ।।
     दुर्घटना में नहीं मरे वे, यह है गढ़ी कहानी।
                                    छद्म वेश में यहीं रहे वे, सुन होती हैरानी।।
                             -डॉ. रुक्म त्रिपाठी

Monday, January 21, 2013


                     कर दिया पराया
चौथेपन में जीवनसाथी, यदि हठात् ही छोड़े साथ।
ऐसा अंधकार छा जाता,राह न सूझे, हुए अनाथ॥
सभी जानते , जब जाना हो, कोई संग न आता ।
सब कुछ यहीं छूट जाता है, जैसा भी हो नाता ॥
     सब सद्ग्रंथ यही कहते हैं, कुछ ऐसी करनी कर जाओ।
     अंतकाल जब जाओ जग से, कष्ट न भोगो सद्गति पाओ॥
जीवनसाथी साठ साल तक, तुमने साथ निभाया।
किंतु अचानक क्या सूझा था, जो कर दिया पराया॥
-डॉ. रुक्म त्रिपाठी

Wednesday, January 16, 2013


साथी 
पहली बार जिसे पकड़ा था,
वह था मेरा हाथ।
और कहा था , सारा जीवन,
रहना हमको साथ।।
अगणित कष्ट झेल कर तुमने,
हर क्षण साथ निभाया।
मुझे कष्ट हो तुम सह लेती,
ऐसा कभी  न पाया।
रही प्रेरणा जीवन भर तुम,
तभी आज लिख पाता।
वरना पहले छंद काव्य से,
नहीं रहा था नाता।।
तुम वसंत बन कर आयीं,
आंधी बन कर छोड़ा साथ।
साठ बरस तक संग निभाया, 
 अब कर गयीं हठात अनाथ।।
-डॉ. रुक्म त्रिपाठी