साथी
पहली बार जिसे पकड़ा था,
वह था मेरा हाथ।
और कहा था , सारा जीवन,
रहना हमको साथ।।
अगणित कष्ट झेल कर तुमने,
हर क्षण साथ निभाया।
मुझे कष्ट हो तुम सह लेती,
ऐसा कभी न पाया।
रही प्रेरणा जीवन भर तुम,
तभी आज लिख पाता।
वरना पहले छंद काव्य से,
नहीं रहा था नाता।।
तुम वसंत बन कर आयीं,
आंधी बन कर छोड़ा साथ।
साठ बरस तक संग निभाया,
अब कर गयीं हठात अनाथ।।
-डॉ. रुक्म त्रिपाठी
आपके ब्लॉग पर पहली बार आया और बहुत सुंदर रचना पढ़ने को मिली आभार.............
ReplyDeleteसार्थक भावनात्मक अभिव्यक्ति दामिनी की मूक शहादत
ReplyDeleteआप भी जाने @ट्वीटर कमाल खान :अफज़ल गुरु के अपराध का दंड जानें .
बहुत बढ़िया आदरणीय-
ReplyDeleteसादर नमन
दोनों आत्माओं को-
पगले को सब ध्यान है, मिलन-विछोह *अनीह ।
जागृति हर एहसास है, पागल बना मसीह ।
पागल बना मसीह, छुड़ाकर हाथ गए जो ।
बाकी अब भी **सीह, डूब कर स्वयं गया खो ।
साठ वर्ष का साथ, मिलो फिर जीवन अगले ।
पकडूँ फिर से हाथ, मसीहा हम हैं पगले ।।
*बिन चेष्टा
**खुश्बू
बहुत खुबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteNew post कुछ पता नहीं !!! (द्वितीय भाग )
New post: कुछ पता नहीं !!!
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति. हार्दिक बधाई.