Wednesday, January 16, 2013


साथी 
पहली बार जिसे पकड़ा था,
वह था मेरा हाथ।
और कहा था , सारा जीवन,
रहना हमको साथ।।
अगणित कष्ट झेल कर तुमने,
हर क्षण साथ निभाया।
मुझे कष्ट हो तुम सह लेती,
ऐसा कभी  न पाया।
रही प्रेरणा जीवन भर तुम,
तभी आज लिख पाता।
वरना पहले छंद काव्य से,
नहीं रहा था नाता।।
तुम वसंत बन कर आयीं,
आंधी बन कर छोड़ा साथ।
साठ बरस तक संग निभाया, 
 अब कर गयीं हठात अनाथ।।
-डॉ. रुक्म त्रिपाठी

5 comments:

  1. आपके ब्लॉग पर पहली बार आया और बहुत सुंदर रचना पढ़ने को मिली आभार.............

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  2. बहुत बढ़िया आदरणीय-

    सादर नमन

    दोनों आत्माओं को-



    पगले को सब ध्यान है, मिलन-विछोह *अनीह ।

    जागृति हर एहसास है, पागल बना मसीह ।

    पागल बना मसीह, छुड़ाकर हाथ गए जो ।

    बाकी अब भी **सीह, डूब कर स्वयं गया खो ।

    साठ वर्ष का साथ, मिलो फिर जीवन अगले ।

    पकडूँ फिर से हाथ, मसीहा हम हैं पगले ।।

    *बिन चेष्टा

    **खुश्बू

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  3. बहुत सुंदर रचना
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति. हार्दिक बधाई.

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