चमड़ी चली गयी , मगर दमड़ी नहीं गयी।
ये बेशरम हैं, इनको मत दाद दीजिए ॥
जो हुस्न पूजते हैं, होते हैं इंटेलिजेंट।
ऐसों को अपने पास ही, आबाद कीजिए॥
नाजुक मिजाज वालों से होती बहुत गलती।
दुतकारिए न इनको, मधुर प्यार दीजिए ॥
गर हुस्न के गरूर से, उनके चढ़े तेवर।
माथा झुका कर , कीमती उपहार दीजिए ॥
-डॉ. रुक्म त्रिपाठी
सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय -
ReplyDeleteशुभकामनायें-